मुक्तक: मन





कभी नयनो उतरु मैं , कभी मैं दिल का हो जाऊँ
तुम्हारे सामने आकर , जरा सा तुझ में खो जाऊँ 
मुझे  हर  रोज  ढूंढेगी  तुम्हारी   हसरते   आकर 
कभी मैं  देर तक सोचू , तेरे  नयनों  में  सो जाऊँ
भरत राज 

Top Post Ad

Below Post Ad

g ads