HomeSahityaमुक्तक: मन मुक्तक: मन Bharat Singh May 10, 2017 कभी नयनो उतरु मैं , कभी मैं दिल का हो जाऊँ तुम्हारे सामने आकर , जरा सा तुझ में खो जाऊँ मुझे हर रोज ढूंढेगी तुम्हारी हसरते आकर कभी मैं देर तक सोचू , तेरे नयनों में सो जाऊँ भरत राज Topics Author Muktak Sahitya Newer Older